कवि मैथिलीशरण गुप्तजी की कविता"पंचवटी"

कवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता "पंचवटी"

नमस्कार दोस्तों आप सभी का फिर से एक में पोस्ट पर स्वागत करते हैं आज हम आपके लिए इस पोस्ट में पंचवटी कविता से रिलेटेड एक पंचवटी की कविता से चार लाइनों का भाग उठाकर लाए हैं इन चार लाइनों को पढ़ने के बाद आपको भी कुछ समझ में आ जाएगा तो चलिए उसे हम आगे पढ़ते भी है और उसे अनुवाद करके भी देखते हैं।

पंचवटी:

"चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही है जल थल में,
साक्षी चांदनी बिछी हुई है अवनी और अंबर तल में।
पुलक प्रकट करती है धरती हरित तरानों की नोको से,
मानो झूम रहे हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों से।"

अनुवाद:

उपरोक्त कविता में मुझे इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि इसमें प्रकृति की सुंदरता का बिल्कुल सजीव वर्णन गुप्तजी द्वारा किया गया है जब इस कविता के सुंदर शब्दों को हम पढ़ते हैं , तो हमारी आंखो के सामने प्रकृति का एक मनोरम दृश्य उपस्थित हो जाता है और ऐसा लगता है की प्रकृति अपनी खुशी को जालस्थल वृक्ष घास आदि के माध्यम से व्यक्त कर रहे है, इन सबसे मन भी खुशी से भर जाता है और प्रकृति का ऐसा सुंदरी देखने के लिए मैं उत्साहित हो जाता हूं इसलिए यह कविता मेरी पसंदीदा कविता गई है|
 आपकी सबसे पसंदीदा कविता कौन सी है वहां भी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं हम उस पर भी एक नया पोस्ट बनाएंगे और उसका भी नए शब्दों के साथ हिंदी अनुवाद करेंगे ,तो आई हो कि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी होगी ऐसे ही प्रश्नों को जानने के लिए अच्छी बातों को जानने पढ़ने के लिए आप हमारे पोस्ट को डेस्क  टॉप पर पिन 📌 कर सकते हैं।

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