उत्तर भारत के राज्य (800 ईसवी से 1200ई )part-२.३

उत्तर भारत के राज्य (800 ईसवी से 1200ई )part-२.३

तत्कालीन उत्तरी भारत में समाज, अर्थव्यवस्था, धार्मिक स्थिति व कला-

            आप सभी का फिर से इस वेब सीरीज में आने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मैं आपके लिए पुरानी चीजों से अर्थव्यवस्था से लेकर धार्मिक स्थिति या फिर कला समाज भारत में हुए उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों के बारे में बताने वाला हूं तो दोस्तों आप मेरे साथ इस प्रकार से इस वेब सीरीज में कंटिन्यू एंड तक बने रहो आप इसे इस तरह से पढ़ लीजिए ताकि आपको किसी कंपटीशन में जनरल नॉलेज में किसी भी स्थिति में किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में हिचकिचाहट ना हो।

तो दोस्तों आपके मन में हर एक बात पर या फिर किसी व्यवसाय को लेकर जा अर्थव्यवस्था को लेकर आपके मन में सवाल उठते होंगे समाज को लेकर सवाल उठते होंगे धार्मिक स्थिति को देखकर वहां के कला को देखकर प्रश्न उठते होंगे तो इन सभी का निवारण तो नहीं बता सकता लेकिन यह जो स्थिति है पैदा कैसे हुई है इस बारे में हम जाने वाले हैं ठीक है।

सामाजिक जीवन -

 समाज चार वर्णों में 

  1. बटा हुआ है क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य एवं सुद्रो में बटा था जो आगे चलकर अनेक जातियों में और बट गया। जिसके पश्चात ब्राह्मणों और क्षत्रियों का समाज में सर्वोच्च स्थान बन गया।
  2.  रूढ़िवादिता व संकीर्णता समाज में बढ़ रही थी। तो तुरंत लोग अपनी ही जाति में विवाह करना पसंद करते थे।
  3.  स्त्रियों को संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त था उनमें पर्दा प्रथा आरंभ हो गई। सती प्रथा का प्रचलन था। आक्रमणकारियों के हाथों में पढ़ने से अपने आप को बचाने के लिए स्त्री या सामूहिक आत्मदाह (जोहार ) कर लेती थी।
  4. खानपान व पहनावे में थोड़ा बदलाव हो गया था जिसके चलते कोई दूसरी जाति के वस्त्र नहीं पढ़ पाता था।
  5.  शुद्र ने जीविका उपार्जन हेतु कृषि, मजदूरी व अन्य धंधे अपना लिए थे।
  6.  मेले त्योहार का पवित्र स्थानों की तीर्थ यात्रा ए करना सामाजिक गतिविधियों का अंग बना हुआ था।

आर्थिक स्थिति

  1.  ग्रामीण जनता कृषि तथा पशुपालन के कार्यों में लगी थी कुछ नगर व्यापारिक केंद्र बन चुके थे पाटलिपुत्र, अयोध्या ,उज्जैन ,कन्नौज, मथुरा और काशी प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन चुके थे।
  2.  उद्योग के क्षेत्र में कपड़ा उद्योग प्रसिद्ध हुआ करता था ऊनी ,सूती तथा रेशमी वस्त्रों में विविधता पाई जाती थी।
  3. धातु उद्योग में कहां से की मूर्तियां, खिलौने, हाथी - दांत की वस्तुएं सोने व चांदी के आभूषण व बर्तन बनाने के काम में प्रगति हुई।
  4.  मध्य एशिया से भारत के व्यापारी संबंध थे चंदन , जयफल ,लॉन्ग ,मसाले बहुमूल्य रत्न, मोती आदि का निर्यात तथा घोड़े राजुर का आयात मध्य एशिया और अरब से किया जाने लगा।

शिक्षा और साहित्य

  1.  शिक्षा का स्वरूप पिछली शताब्दियों की तरह ही विकसित हो रहा था मंदिर मठ घटिका अग्रहार और विहार शिक्षा के केंद्र होते थे।
  2.  उच्च शिक्षा सुव्यवस्थित ढंग से दी जाती थी व्यवसायिक शिक्षा का प्रशिक्षण श्रेणियों वाला शिल्पी ओ के समूहों में दिया जाता था।
  3.  बौद्ध धर्म ने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया विक्रमशिला का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय इस काल की देन है।
  4.  साहित्य की प्रमुख भाषा संस्कृति जिसका स्वरूप बिगड़ा तो भाषाओं के कई रूप का विकास हुआ।
  • *नालंदा काशी विक्रमशिला और कन्नौज इस काल के प्रमुख शिक्षा केंद्र हैं।*


विज्ञान और प्रौद्योगिकी
             विज्ञान और प्रौद्योगिकी 12 वीं शताब्दी के गणितज्ञ भास्कराचार्य की पुस्तक सिद्धांत शिरोमणि चार भागों में बैठी है इस पुस्तक का अनुवाद arabi-farsi तथा यूरोपीय भाषाओं में हुआ है औषधि विज्ञान पर माधव ने अनेक शोध ग्रंथ लिखे। "रुग्विनिष्चय "एक प्रसिद्ध पुस्तक है चरक संहिता तथा सुश्रुत संहिता का अनुवाद अरबी तिब्बती भाषा में में भी 12वी शताब्दीमे हुआ था।

धार्मिक जीवन

  1.  वैष्णव से बौद्ध तथा जैन आदि धर्म लोगों के लिए प्रेरणादयक थी।
  2.  अलवार (वैष्णव) और नयनार (शैव) संतो के नेतृत्व में दक्षिण भारत में भक्ति आंदोलन का प्रसार प्रचार करने लगे।
  3.  इस युग में भगवान विष्णु की उपासना दो रूप में किए जाते थे पहला कृष्णावतार तथा दूसरा रामअवतार को आराध्य मानकर इनकी उपासना की जाती थी भगवान विष्णु के 10 अवतारों की कथा इस समय बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी।
  4.  भगवान विष्णु तथा राम व कृष्ण से संबंधित कथाओं को दीवारों पर मूर्तियों व चित्रों के द्वारा दर्शाया गय हाय है।
  • *दक्षिण भारत में आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य ने धर्म के प्रति नव जागृति फैला दी थी।*

वास्तु कला एवं चित्रकला

  1. इस काल में सुंदर मंदिर तथा स्मारक बनाए गए इनमें पुरी का जगन्नाथ मंदिर भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर और कोणार्क का सूर्य मंदिर सबसे अच्छे और उत्तम उदाहरण भी है।
  2.  मध्यप्रदेश में चंदेला द्वारा बनवाए गए खजुराहो के मंदिर अपनी उत्कृष्ट कला व मूर्तियों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध है इनमें कंदरिया महादेव मंदिर प्रमुख रूप से है इसे विश्व डाय भाग ( विश्व धरोहर )में शामिल किया गया है।
  3.  राजस्थान के आबू पर्वत पर बने दिलवाड़ा के जैन मंदिर अपनी अनुपम सुंदरता के लिए विश्व में विख्यात है।
  4.  मैसूर जिले के श्रवणबेलगोला में गोमतेश्वर की जैन तीर्थ कार की मूर्ति स्वतंत्र रूप से खड़ी विश्व की मूर्तियों में (57 फीट )का अनुपम सबसे अच्छा उदाहरण है।
  5.  मूर्तिकला के विकास में उत्कृष्ट उदाहरण पाल शासकों के काल में काले पत्थर की मूर्तियां है।
  6.  इस काल में चित्रकला का विकास हुआ मंदिरों का राजमहल को सजाने के लिए सुंदर भित्ति चित्र बनाएगी जाते थे।
  7.  लघु चित्रों को बनाने की कला का आरंभ इसी शताब्दी से हुआ पुस्तकों को आकर्षक बनाने के लिए यह चित्र बनाए जाते थे जिससे पुस्तक बहुत ही सुंदर और अच्छे लगते थे जिसके कारण लोग भी पुस्तकों की तरह उन्हें पढ़ने में ज्यादा रूचि दिखाएं लगाया जाए ज्यादा आकर्षित होने लगे।

Note -तो आपको यहां पर इस वेब सीरीज में हमारे द्वारा बताई गई जानकारी अच्छी लगी होगी तो आप अपने दोस्त को भी यहां वेब सीरीज सेंड करिए ताकि उन्हें भी यह नॉलेज मिल सके और किसी भी कंपटीशन में भाग ले सकें और अपने हर प्रश्न का उत्तर फटाक से दे दे।

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