1. वर दे, वीणावादिनी .............................भर दे!
शब्दार्थ:
वर दे = वरदान दे प्रिय = सुनने में मधुर लगने वाला
स्वतंत्र रव = आजादी की ध्वनि
अमृत = अमर रहने वाला
नव = नयावीणावादिनी = वीणा बजाने वाली सरस्वती देवी
व्याख्या: इस कविताा में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कह रहेे हैं, की हे वीणा बजाने वाली सरस्वती मां | तू मुझे वरदान दे ,साथ ही तू मेरेेेेे इस भारत देश को तू प्रिय और स्वतंत्र वाणी प्रदान करो तथाा इसमें अमरता का नया मंत्र भी प्रदान कर दो ।
2. काट अन्ध उर .................................जग कर दे !
व्याख्या: यहां पर कवि कह रहे हैं कि हे सरस्वती मां ! मनुष्य मात्र के हृदय में जो अज्ञान के भिन्न - भिन्न स्तर के बंधन हैै उन्हें हर प्रकार के अज्ञान मुक्त कर दे और उनके हृदय में ज्ञान की ज्योति रूपी झरना बहा दे मन केे विकारों (बुरेेेे भाव ) को दूर कर दे | अज्ञान के अंधकार को मिटा दे | उनमे ज्ञान का प्रकाश भरदे और पूरेेेे संसार को जगमगा दे |
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