class 8th ( हिंदी ) पाठ -1 वर दे

1. वर दे, वीणावादिनी .............................भर दे!

शब्दार्थ: 
वर दे = वरदान दे प्रिय = सुनने में मधुर  लगने वाला 
स्वतंत्र रव = आजादी की ध्वनि 
अमृत  = अमर रहने वाला 
नव  = नयावीणावादिनी = वीणा बजाने वाली सरस्वती देवी

व्याख्या: इस कविताा में कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कह रहेे हैं, की हे वीणा बजाने वाली  सरस्वती मां | तू मुझे वरदान दे ,साथ ही तू मेरेेेेे इस भारत देश को  तू प्रिय और स्वतंत्र वाणी प्रदान करो तथाा इसमें अमरता का नया मंत्र भी  प्रदान  कर दो ।


2. काट अन्ध उर .................................जग कर दे !

व्याख्या: यहां पर कवि कह रहे हैं कि हे सरस्वती मां ! मनुष्य मात्र के हृदय में जो अज्ञान के भिन्न - भिन्न स्तर के  बंधन हैै उन्हें हर प्रकार के अज्ञान  मुक्त कर दे और उनके हृदय में ज्ञान की ज्योति रूपी झरना बहा दे मन केे विकारों (बुरेेेे भाव ) को  दूर कर दे | अज्ञान के अंधकार को मिटा दे | उनमे  ज्ञान का प्रकाश भरदे और पूरेेेे संसार को जगमगा दे |


3. नव गति .......................................नव स्वर दे !

व्याख्या: कवि सरस्वती मां से कहते हैं, कि हे सरस्वती मां आकाश के समान यह नया समाज  दूर- दूर  तक फैला हुआ है , इसमें नए-नए कवि नए पक्षियों ( जो अभीजन्म लेकर  चलने वाले है, वह  पक्षियों उड़ान भरने के लिए आकुल  हैं तो आप इन नए कवि रूपी पक्षियों को नई गति प्रदान करो । नवीन लय और ताल से युक्त छंद प्रदान करो दो । नए-नए पंख देकर ऊंची उड़ान भरने योग्य बना दो । इनके कंठ को  कोमल और नए-नए बादल के समान धीमा और गंभीर स्वर  प्रदान कर दें ताकि यह नए-नए गीत गा सके |

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