परासरण क्या हैं? इसकी क्रिया विधि को समझाइये |

 परासरण क्या हैं? इसकी क्रिया विधि को समझाइये |

        इस पोस्ट में हम परासरण के बारे में जानने वाले इसे लास्ट तक पड़े क्योकि इसे पूरी क्रिया विधि के साथ जानेंगे साथ ही  साथ यह कितने प्रकार की होती है यह भी जानेगे | इसे  हम दो तरह की परिभाषा से समझते हैं , ताकि आपके समझ  में आ सके |

    1)   " परासरण वह क्रिया है जिसमें अर्ध्द- पारगम्य झिल्ली द्वारा प्रथक किये गए सान्द्रता वाले दो  घोल  (solution) में जल होता है, अथवा किसी विलायक  के अणुओं का विसरण कम सांद्रता वाले घोल से अधिक सांद्रता ( concentration )  घोल की ओर होता है,   परासरण कहलाता हैं|"

2)  परासरण (Osmosis ) दो भिन्न सांद्रता वाले घोलो के बिच होने वाले एक विशेष प्रकार की विसरण क्रिया हैं जो एक अर्द्ध [पारगम्य झिल्ली के द्वारा होती है , इसमें विलायक (घोलक ) के अणु कम सांद्रता वाले घोले से अधिक सांद्रता वाले घोल की ओर गति करते हैं यह एक भौतिक क्रिया हैं जिसमे घोलक के अणु बिना किसी बाह्य उर्जा के प्रयोग के अर्द्ध पारगम्य झिल्ली से होकर गति करते हैं विलय ( घुल्य ) के अणु गति नहीं करते है क्योकि वे दोनों घोलो के अलग करने वाली अर्द्ध पारगम्य झिल्ली को पर नही कर पते है | परासरण में उर्जा मुफ्त होती है जिसके प्रयोग से पेड़ - पौधे के बढते जड़ चटानो को भी तोड़ देते हैं|   

       वैसे  परासरण वास्तव में, विलायक का विसरण झिल्ली के आर - पार  दोनों ओर होता हैं, परन्तु कम सांद्रता वाले घोल की ओर तेजी से होता है, यह विसरण  के सामान्य सिद्धनतो के अनुरूप है क्योकि कम सांद्रता वाले घोल में विलायक के अणुओं की सांद्रता , अधिक  सांद्रता वाले घोल के विलायक के अणुओं की अपेक्षा अधिक होती हैं| इसलिए परासरण भी एक प्रकार का विसरण होता  हैं|

        परासरण की क्रिया विधि 

         परासरण  की क्रिया दो तरह  से होती है और हम इसमें  इन दोनों ही तरह से परासरण के प्रक्रिया को समझेंगे एक  इमेज के माध्यम  से जो इस प्रकार है:

कम सांद्रता वाले घोल से अधिक सांद्रता वाले घोल की तरफ विलायक के अणुओं की गति के कारण बाद में विलयन का स्टार अलग-अलग गो जाते है|

परासरण की क्रिया का प्रदर्शन इस प्रयोगों के आधार पर बताया हैं|जिसमे दो तरह के परासरण मौजूद हैं:

        1.  अजीवित तंत्र में परासरण:-  

        इस तंत्र में परासरण  की क्रिया निन्मलिखित प्रयोग द्वारा प्रदर्शित की जा सकती हैं इस प्रयोग को "थिसिल किप"  प्रयोग भी कहा जाता हैं|

        
            एक  थिसिल किप के चौड़े मुह पर कृत्रिम अर्द्ध-पारगम्य (semi-permeable membrane ) जैसे पर्चमेंट कागज को मजबूत बांद देता है इस किप शर्करा का गढ़ा घोल डालकर नली में निशान लगा देते है| (L 1 ) इस थिसिल किप को पानी से भरे बिकर में रखकर छोड़ देते है कुछ समय बाद हम देखते है की किप में घोल अंकित किये गए निशान (L 1)  से ऊपर उठ जाता है (L 2) | इस क्रिया को परासरण कहा जाता है क्योकि बिकार में पानी के अणुओं की सांद्रता अधिक होती है तथा थिसिल किप में कम अतः पानी के अणु बिकार से किप की ओर अर्द्ध - पारगम्य झिल्ली में से होकर जाते हैं|

        2.जीवित तंत्र में परासरण:- 

        जीवित तंत्र में एक महत्वपूर्ण कर्यिकीय ( physiological ) प्रक्रिया है , अल्लू के ऑस्मोस्कोप की सहायता से परासरण का प्रदर्शन किया  जा सकता हैं| जो निचे इस प्रकार हैं:


        इस चित्र में देख सकते है की एक आलू को छीलकर  इसका एक सिरा चपटा कट लिया है तथा दुसरे सिरे की ओर से मध्य में लगभग तली तक  एक गहरी गुहा (cavity ) बनाते हैं , इस कैविटी में शर्करा का गढ़ा घोल भर लेते है तथा उचाई को टाचपिन लगाकर अंकित कर  लेते हैं इस आलू  को पेट्रिदिश ( petri-dish ) में भरे पानी में रखते हैं  कुछ घंटो के बाद टेस्ट करने पर पता चलता है की  आलू के अन्दर घोल का स्तर बढ़ जाता है स्तर में इस वृधि से बहार के पानी के अंदर प्रवेश करने के कारन होती है पानी का अंदर प्रवेश आलू की अर्द्ध - पारगम्य झिल्ली द्वारा होता है इस प्रकार के प्रोयोग में  पानी के अणुओं का  मार्ग परासरण के नियम से संचालित होता हैं|

परासरण कितने प्रकार की होती है?

    परासरण दो प्रकार की होती हैं :
    1. अन्तः परासरण 
    2. बहिः  परासरण
        इन दोनो परासरण को एक चित्र के ;माध्यम से  समझते है :




1. अन्तः परासरण :  

        ऑस्मोसिस (osmosis ) की क्रिया में पानी अथवा विलायक के अणु बहार के माध्यम से कोशिका के अंदर प्रवेश करते है जिससे कोशिका (cell ) फुल जाते है|

2. बहिः परासरण :- 

        बाह्य  परासरण की क्रिया में पानी  अथवा विलायक के अणु कोशिका के अन्दर से  बहार के माध्यम में आते हैं जिसमे कोशिका सिकुड़ जाती हैं|
 
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