Class-8th (विज्ञान) अध्याय -1 फसल उत्पादन और प्रबंधन

अध्याय -1 

 *फसल उत्पादन और प्रबंधन*

       आप सभी जानते होंगे कि सभी सजीव को भोजन की आवश्यकता होती है पौधे अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं। हरे पौधे अपना भोजन किस प्रकार संश्लेषित करते हैं आप जानते हैं लेकिन मनुष्य सहित बाकी जंतु अपना भोजन भोजन बनाने में असमर्थ है तो तो फिर जंतुओं के भोजन का स्त्रोत क्या है?
       मगर हम भोजन ही क्यों करते हैं? आपको पता होगा की सजीव भोजन से ऊर्जा प्राप्त होती है और इसका उपयोग हम विभिन्न प्रक्रम जैसे कि पाचन, श्वसन और उत्सर्जन में संपादन करते हैं हम अपना हो जा सजीव पौधों या जंतुओं से इन दोनों  से प्राप्त करते हैं।

क्यों हमें भोजन की आवश्यकता पड़ती हैं अतः हम अपने देश के इतने लोगो के लिए भोजन कैसे उपलब्ध कर पाएंगे?👀

इसके लिए हमे भोजन के उत्पादन को एक बाड़े स्तर पर करना आवश्यक हैं ।👩
    एक विशाल जनसँख्या को भोजन प्रदान करने के लिए इसका नियमित उत्पादन , उचित प्रबंधन एवं वितरण करना आवश्यक हैं|

1.1 कृषि पद्धतिया 

    जब एक ही किस्म के पौधे किसी स्थान पर बड़े प्पैमाने पर उगाये जाते है,तो इसे फसल कहते हैं| हम इसे एक उदहारण लेते हैं ,जैसे की गेहू के फसल का अर्थ है की खेत में उगाये जाने वाले सभी  पौधे गेहू  के है|
    आप सब जानते होंगे की फसल विभिन्न प्रकार की होती है जैसे की अनाज , सब्जिया एंड फल ,जिस मौसम में यह पौधे उगाये जाते है उसके  आधार पर हम फसलो को वर्गीकृत करते है|
        भारत एक महान देश है ,यह ताप,आद्रता और वर्षा जैसी जलवायु परिस्थिति एक क्षेत्र से  दुसरे क्षेत्र में भिन्न है , अतः देश के विभिन्न भागो में विभिन्न प्रकार की फासले उगाई जाती है इस विभिन्नता के बाद भी मोटे टूर पर फसल को दो वर्ग में डिवाइड किया  गया हैं |

 1) खरीफ की फसल 

    वे फसल जिन्हें वर्षा ऋतू में बोया जाता है खरीफ की फसल कहलाती है भारत में वर्षा ऋतू सामान्य रूप से जून-सितम्बर तक होती है और इसी ऋतू  में हमें खरीफ की फसल जैसे : धान , मक्का , सोयाबीन , मूंगफली,कपास आदि फसलो को बोते हैं |

2) रबी की फसल 

    एसे फसल जो शीत ऋतू में उगाई  जाती हैं रबी की फसल कहलाता है यह अक्टुम्बर - मार्च तक उगाई जाती है रबी की फसल में आने वाले कुछ फसल जैसे:- गेहू, चना , मटर , सरसों तथा अलसी आदि रबी की फसल क उदहारण  होती हैं इसके आलावा , कई स्थानों पर दल और सब्जिया ग्रीष्म ऋतू में उगाई जाती हैं|

1.2 आधारिक फसल पद्धतिया 

       फसल उगने के लिए किसान के अनेक क्रियाकलापों सामयिक अवधि में करने पड़ते है आप सभी ने देखा होगा की यह क्रियाकलाप उस प्रकार के है जिनका उपयोग माली या आप सजावटी पौधे  उगने  के लिए करते  हैं ये कार्य कृषि पद्धति हैं,  जो आगे दिए गए:- 
    
    1)     मिटटी तैयार करना 
    2)     बुवाई 
    3)    खाद एवं उर्वरक देना 
    4)    सिचाई 
    5)    खरपतवार से सुरक्षा 
    6)    कटाई 
    7)    भण्डारण 

1.3 मिटटी तैयार करना 

    फसल उगने से पहले मिटटी तैयार करना  पहला काम होता है मिटटी को पलटना तथा  इसे पोला बनाना कृषि का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है इससे जड़े  भूमि में गहरे तक जा सकती है पोली मिटटी में गहरे में धसी जड़े भी सरलता से श्वसन कर सकती हैं पोली मिटटी किस  प्रकार पौधो की जड़ो को सरलता से श्वसन करने में मदद करते हैं|
    पोली मिट्टी , मिटटी में रहने वाली केचुए और सूक्ष्मजीव की वृद्धि करने में सहायता करती है ये जीव किसान के मित्र है क्योकि यह मिटटी को पलटकर पोला करते है तथा हुमस  बनाते है|
  
  परंन्तु मिटटी को  पलटना और पोला करना क्यों जरुरी है?
     आप सभी ने  पिछली कक्षा में पढ़ पड़ा होगा की मिट्टी में खनिज ,जल ,वायु तथा कुछ सजीव होते है इसके अतिरिक्त , मृत पोधे एवं जंतु भी मिटटी में पाए जाते है जो जीवो द्वारा अपघटित  होते हैं इस प्रक्रम में मृत जीवो में पाए जाने वाले पोषक मिटटी में निर्युक्त होते हैं यह पोषक पोधो द्वारा  अवशोषित किये जाते है|
    क्योकि उपर की परत के कुछ सेंटीमीटर की मिटटी ही पौधे की क्रेद्धि में सहायक होते है इसे पलटने और पोला करने से  पोषक पदार्थ उपर आ जाते है और पौधे in पौषक पदार्थो का उपयोग करते है , अतः मिटटी  को पलटने या पोला करना पसल उगने  के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है|
    मिटटी को पलटने या पोला करने की प्रक्रिया जुटी कहलाता है इसे हल चला कर करते हल लकड़ी या लोहे के बने  होते है यदि मिटटी अत्यंत सुखी  है तो जुटी से पहले इसे पानी देने की जरुरत भी पड़ सकती है जुटे हुए खेत में मिटटी के बड़े ढेले भी हो सकते है इंगे एक पटल की सहायता से तोडना होता है बुआई या सिचाई के लिए खेत को समतल करना जरुरी है यह कार्य पटल द्वारा किया जाता है|
   कभी - कभी जुटी से पहले खाद दी जाती है इससे जुटी के समय खाद मिटटी में भली भाति मिल जाती है बुआई से पहले खेत में पानी दिया  जाता है |

 
कृषि- औजार
    हमें अच्छी उपज के लिए बुआई से पहले मिटटी को भुरभुरा करना जरुरी होता है , यह कार्य अनेक औजार से किया जा सकता है हल,कुदाली या कल्टीवेटर इस कार्य में use किए जाने वाले प्रमुख  ओजार हैं | 

कृषि ओजार 

हल:-  प्राचीन काल से  ही हल का उपयोग जुताई , खाद या उर्वरक मिलाने, खरपतवार निकालने एवं मिटटी खुरचने के लिए किया जाता है यह ओजार लकड़ी  का बना होता है जिसे बैलो की जोड़ी अथवा अन्य पशुओ की सहायता से खीचा जाता है इसमें लोहे की मजबूत तिकोनी पति होती है जिसे फाल कहते है |  हल का कुख्या  भाग लम्बी लकड़ी का बना होता है जिसे हल-शैफ्ट कहते है इसके एक सिरे पर हैडल होता है तथा दसरा सिरा जोत के डंडे से जुड़ा होता है जिसे बैलो की गरदन के उपर रख जाता है एक जोड़ी बैल एवं इ आदमी एसे सरलता से चला सकते है जो आप चित्र में देख सकते है आज के समय में लोहे के हल तेजी से देसी लकड़ी के हल की जगह  पर लिया जा रह है |
   
 कुदाली:- यह एक सरल ओजार है जिसका उपयोग खरपतवार निकलने एवं मिटटी को पोला करने के लिए किया जाता है|

कुदाली /हल 

 इसमें लकड़ी या लोहे की छड होती है जिसके एक सिरे पर लोहे की चौड़ी और मुड़ी प्लेट लगी होती है जो ब्लड की तरह कार्य करती है |  इसका दूसरा सिरा पशुओ द्वारा खीच जाता है जैसा की चित्र में दिख सकते है |

कल्टीवेटर:- आज के समय में जुताई ट्रैक्टर द्वार a संचालित कल्टीवेटर से की जाती है कल्टीवेटर की उपयोग से श्रम एवं समय दोनों की बचत होती है 

कल्टीवेटर 
1.4 बुआई
        बुआई फसल उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण step है बोने से पहले अच्छी गुणवता वाले साफ एवं स्वस्थ बीजो का चयन किया जाता है किसान अधिक उपज देने वाले बीजो को प्राथमिकता देता है| आप सभी आगे क्रियाकलाप 1.1 में देख सकते है |

    क्रियकलप 1.1 
हम सबसे पहले एक बीकर में पानी  लेते है और इसे आधी  बीकर भर देते है आब इसमे एक मुठी अनाज  डालते है और इसे भली भाति ह्हिलाते है कुछ समय प्रतीक्षा करते है|
    अब आप के सामने  कुछ  बिज जल के ऊपर जैरने लगते है जो बिज पानी में बैठे है वह भरी बिज है तथा हलके बीज [अन में उपर तैर रहे होंगे ,इस प्रकार  के बीजो को  क्षतिग्रस्त बीज होती है | तथा हम अच्छे और स्वस्थ बीजो को क्षतिग्रस्त बीजो से अलग करने का सह एक सबसे अच्छी विधि है|
    बुआई से पहले हमें कुछ जरुरी ओजार तैयार रखने होते है तथा उनके बारे में जान लेना होता है|जैसा की निचे चित्र में देख सकते है|
 परंपरागत ओजार:- 
        परंपरागत रूप से बीजो की बुआई में इस्तमाल किया जाने वाला ओजार किप का आकार का होता है जो आप निचे चित्र में देख सकते है | बीजो को किप के अन्दर डालने पर यह दो या तीन नुकीले सिरे वाले पीपों से गुजरते है | ये सिरे मिटटी को भेदकर बीज को स्थापित करते हैं|
बीज बोने  का पारंपरिक तरीका 
सीड-ड्रिल:- आज के समय में बुआई के लिए ट्रैक्टरद्वारा सीड-ड्रिल का उपयोग किया जाता | इसके  इसके द्वारा बीजो में समान दुरी एवं गहरे बनी होती है यह सुनिश्चित करता  है की बुआई के बाद बीज मिटटी द्वारा धक् जाये , इससे बीजो को कोई भी पक्षी द्वारा खाया न जाये | सीड-ड्रील से बुआई  करने से समेत तथा श्रम दोनों की बचत होतोई है| जैसा की आप निचे चित्र में देख सकते है|
सीड-ड्रिल से बीज  बोने का नया तरीका 

    👉धान जैसे कुछ पौधो के बीज को पहले पौधशाला में उगाया जाता है पौधे  तैयार हो जाने पर उन्हें हाथो द्वारा खेत में लगाया जाता है कुछ वनीय और पुष्पि पौधे भी पौधशाला में उगाया जाता है|

पौधो को अधिक घने होने से रोकने के लिए बीज के बिच दुरी रखना होता है इससे पौधो को सूर्य  का प्रकाश , पोषक या जल पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होती है अधिक घनेपन को रोकने के लिए कुछ पौधे को निकल कर हटा दिया जाता है|

   1.5  खाद एवं उर्वरक मिलाना 
        वे पदार्थ जिन्हें मिटटी में पोषक स्तर बनाये रखने के लिए मिलाया जाता है , उन्हें ही खाद एवं उर्वरक कहते है|
         मिटटी फसल को खनिज पदार्थ प्रदान करता है यह पोषक पौधो की वृद्धि के लिए जरुरी होते है कुछ क्षेत्रो में किसान खेत में एक के बाद दूसरी फसल उगाते है |  खेत कभी भी खाली नही छोड़ते है का|

कल्पना कीजिए की पोषको का क्या होता है?
    फसलो के लगातार उगने से मिटटी में  कुछ पोषक की कमी हो जाती है इस नुकसान को पूरा करने के लिए किसान खेतो में खाद देते है  यह प्रक्रम 'खाद देना कहलाता है |कम मात्रा में खाद देने से फसल कमजोर  हो जाते है|
    खाद एक जैविक(कार्बनिक ) पदार्थ है जो की पौधो या जंतु अपशिष्ट से प्राप्त होती है किसान पादप एवं जंतु अपशिष्ट को एक  गड्ढे में डालते है तथा इसका अपघटन होने के लिए खुले में छोड़ देते | अपघटन कुछ सूक्ष्म जीवो द्वारा होता है अपघटित पदार्थ खाद के रूप में  use किये जाते है आप कक्षा 6 वी में 'वर्मी कम्पोस्टिंग ' अथवा केचुए द्वारा खाद तैयार कैसे होता है इस विषय में पढ़ चुके है , कृपया कक्षा 6 वी की पुस्तक में देखे |

 क्रियाकलाप 1.2 

        मुंग या चने के बीज लेते है और  उन्हें अंकुरित करते है इनमे से एक ही आकार वाले तीन नावोद्भिद छटाई कर लेते है अब तीन गिलास लेते है इन्हें a,b,c, नाम देते है ग्लास a में थोड़ी सी मिटटी लेते है और उसमे थोड़ी सी गोबर की खाद मिलते  है ग्लास b में समान मात्रा में मिटटी लेकर उसमे थोडा सा उरिया मिलते है ,ग्लास c में कुछ मिटटी लेते है बिना कुछ मिलाये [चित्र 1.3 (a) की तरह ]  अब इनमे पानी की समान मात्रा में डाल देते है और इसे सुरक्षित स्थान पर रख देते है प्रतिदिन पानी देते रहते है और यह कार्य 7-10 दिन तक जरी रखते है तथा इसकी वृद्धि को नोट इतने दिनों तक हर दिन का नोट करते रहना हैं|[चित्र 1.3 (b)]

            उर्वरक रासायनिक पदार्थ होते है जो विशेष पोषको से सम्रद होते है वे खाद से कैसे भिन्न है? 
        उर्वरक का उत्पादन फैक्ट्रियो में किये जाते है , उर्वरक के कुछ उदा.:- यूरिया , अमोनियम, सल्फेट, सुपर फास्फेट , पोटाश, NPK (नाइट्रोजन , फास्फोरस,पोटेशियम ) आदि |
        इनके उपयोग  से किसानो को गेहू , धान तथा मक्का जैसी फसलो की अच्छी उपज प्राप्त होती  है परन्तु उर्वरको के अधिक उपयोग से मिटटी की उर्वरता में कमी आ जाती है यह जल प्रदुषण का भी कारण बन गया है अतः मिटटी की उर्वरता बनाये रखने के लिए हमें उर्वरको के स्थान पर जैबिक खाद का उपयोग करना चाहिए या फसलो के बिच में कुछ दुरी रखना चाहिए |
        खाद  के उपयोग से मिटटी की गठन एवं जल अवशोषण क्षमता में भी वृद्धि होती है इससे मिटटी में सभी पोशाको की प्रति पूर्ति हो जाती है |
        मिटटी में पोषको की पूर्ति का अन्य तरीका है और वह फसल चक्रण है | यह एक फसल के बाद खेत में दुसरे किस्म  की फसल एकान्तर क्रम में उगा कर किया जा सकता है पहले , उतर भारत में में किसान फलीदार चारा एक ऋतू में उगते थे तथा गेहू दूसरी ऋतू में उगते थे इससे मिटटी में नाइट्रोजन का पुनः जन्म हो जाता था इसलिए किसानो को इस पद्धति को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया |
        पिछली कक्षा में आप पड़ चुके होंगे राइजोबियम बैक्टरिया के बरे में | यह फलीदार (लैग्युमिनस ) पौधो की जड़ो की ग्रंथिकाओ में पाए जाते है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है|

उर्वरक एवं खाद में अंतर 



    खाद के लाभ :-  जैविक खाद को उर्वरक की  अपेक्षा अधिक अच्छी मानी जाती  है और इसकी मुख्य वजह यह है:-
  • इससे मिटटी की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है |
  • इससे मिटटी भुरभुरी एवं सरंध्र हो जाती है जिसके कारण गैस विनिमय सरलता से होती है |
  • इससे मित्र जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है |
  • इसे जैविक खाद से मिटटी का गठन सुधर जाती है |
1.6 सिचाई 
        जीवित रहने के लिए प्रत्येक जीव को जल की आवश्कता होती है , उसी प्रकार पौधो के वृद्धि के लीये जल की आवश्कता होती है पौधे की जड़ो द्वारा जल का अवशोषण होती है जिसके साथ खनिज और उर्वरको का भी अवशोषण होती है , पौधो में लगभग 90 % जल होता है जल इनके लिए आवश्यक हो क्योकि बीजो का अंकुरण कम जल  में नहीं हो सकता | जल में घुले हुए पोषक का स्थानान्तरण पौधे का प्रत्यक भाग में उपस्थित रहता है , यह फसल की पीला एवं गर्म हवा से रक्षा करती है , स्वस्थ फसलके वृद्धि के लिए मिटटी की नमी को बनाये रखने के  लिए खेत में नियमित रूप से पानी देना आवशक है |
        एक निश्चित अन्तराल के बाद खेत में पानी देना सिंचाई कहलाता है | सिंचाई का समयहर ऋतू में भिन्न होता है , गर्मी ;में   फसलो को पानी देने की आवश्यकता ज्यादा होती है , ऐसा क्यों है? क्या यह मिटटी एवं पत्तियो से जल वाष्पन की दर अधिक होने से हो सकता है|

सिंचाई के कारण:-   कुए , जलकूप,तालाब,झील , नदिया,बांध, नहर आदि जल के कारण है|

सिंचाई के पारंपरिक तकनीक :-

        सिंचाई के पारंपरिक तकनीक से पहले कुओ , झीलों  एवं नहर में जौजुद जल  को  निकल कर खेतो तक विभिन्न तरीको से पहुचाया जाता  था , मजदुर तथा किसान इन  विधियों से खेत में पानी की सिंचाई करते थे |
                

जैसा की चित्र में आप देख सकते है : (1) मोट, (2) चैन पम्प , (3)ढेकली , (4) रहट (उत्तोलक तंत्र) पहले के समय में इन तरीको से किसान खेत  में फसल को पानी देते थे उनकी अपनी तकनीक थी जिस पर वह कार्य करके खेत में पानी सींचते थे|

सिंचाई की आधुनिक विधिया 

        
ड्रिप तंत्र 

छिडकाव तंत्र 

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